मोती भी उसको अपने हाथों से रोटी खिलाता।
एक झोंपड़े के द्वार पर बाप और बेटा दोनों एक बुझे हुए अलाव के सामने चुपचाप बैठे हुए थे और अंदर बेटे की जवान बीवी बुधिया प्रसव-वेदना में पछाड़ खा रही थी। रह-रहकर उसके मुँह से ऐसी दिल हिला देने वाली आवाज़ निकलती थी, कि दोनों कलेजा थाम लेते थे। जाड़ों प्रेमचंद
साधु की पुत्री - हितोपदेश की प्रेरक कहानियां
मोरल – विषम परिस्थितियों में भी अपने स्वभाव को नहीं बदलना चाहिए।
हेमंत सोरेन और के. कविता पर आए सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के निचली अदालतों के लिए क्या मायने हैं?
घर आकर मां को मक्खियों के बारे में बताया। वह हमारे खाने को गंदा कर देती है। घर में आकर गंदगी फैल आती है। इसे घर से बाहर भगाना चाहिए।
चोर बस इतना ही कर के नहीं माने, उन्होंने सभी व्यापारियों को मस्ती के लिए नाचने और गाने के लिए कहा। अचानक व्यापारियों के नेता को एक विचार आया। उन्होंने अपनी गुप्त भाषा के जरिए खुद को बचाने की अपनी योजना बनायी। और फिर व्यापारियों ने चोरों को मुर्ख बना अपना सारा सामान भी वापिस ले लिया और अच्छा सबक भी सिखाया।
Impression: Courtesy Amazon Published by Agyeya, the pen identify of Satchidananda Hirananda Vatsyayan, this Hindi fiction e-book was at first published in 1940. The novel is a revolutionary work and is considered a landmark in Hindi literature. Agyeya, an influential figure during the Chhayavaad movement, delivers to everyday living the tumultuous journey from the protagonist, Shekhar, by way of numerous phases of his lifestyle. The novel explores Shekhar’s evolution from a carefree and idealistic youth to some mature individual grappling Together with the complexities of everyday living.
धत्! कल हो गई. देखते नहीं. रेशमी बूटों वाला सालू...?"
Via this Hindi fiction ebook, Munshi Premchand gives a vivid and practical portrayal of rural daily life, offering viewers a glimpse to the intricate Internet of human emotions and societal constructions in early twentieth-century India. The novel stands to be a timeless basic, exploring the themes of morality, sacrifice, and The hunt for dignity amidst a backdrop of agrarian struggles.
(एक) रज्जब क़साई अपना रोज़गार करके ललितपुर लौट रहा था। साथ में स्त्री थी, और गाँठ में दो सौ-तीन सौ की बड़ी रक़म। मार्ग बीहड़ था, और सुनसान। ललितपुर काफ़ी दूर था, बसेरा कहीं न कहीं लेना ही था; इसलिए उसने read more मड़पुरा-नामक गाँव में ठहर जाने का निश्चय किया। वृंदावनलाल वर्मा
भुवाली की इस छोटी-सी कॉटेज में लेटा,लेटा मैं सामने के पहाड़ देखता हूँ। पानी-भरे, सूखे-सूखे बादलों के घेरे देखता हूँ। बिना आँखों के झटक-झटक जाती धुंध के निष्फल प्रयास देखता हूँ और फिर लेटे-लेटे अपने तन का पतझार देखता हूँ। सामने पहाड़ के रूखे हरियाले में कृष्णा सोबती
विमला खाना परोस रही थी। कमल बैठा पत्र लिख रहा था। वह सोचता था कि जब इसे समाप्त कर लूँगा, तब उठूँगा। देर ही क्या है, कुछ भी तो और अधिक नहीं लिखना है। बस, यही दो-तीन, हाँ दो ही पंक्तियाँ और लिखने को हैं कि फिर मैं हूँ और भोजन। और विमला मन-ही-मन झुँझला भगवतीप्रसाद वाजपेयी
एक दिन शेरू को राहुल ने एक रोटी ला कर दिया।